निःस्वार्थ नामक शीर्षक की कविता सम्पति चौरे की कलम से…
भारत सम्मान, लेख-आलेख/कविता –
जन्म देकर मां तुमने
मुझ पर किया उपकार।
तेरी स्नेह की छाँवो में
सदा रहूं मैं निहाल।।
हर बांधाओ को हरती
करूणा ह्दय में ममता।
चांद सी शीतलता तुुम में
धरा तुल्य हैं समता।।
शब्दो की संगीत साज हो
फूलो से खिले सूरत।
करूं वंदना सुबहो शाम
भगवान की तुम मूरत।।
जीवन उमंगो से भरा रहें
पग-पग चलना साथ।
भीड़ में कही खो न जाऊं
छोड़ना नही मेरा हाथ।।
अच्छे बुरे का ख्याल रखे
हर समस्या का हो समाधान।
उज्जवल भविष्य कामना
मांगे प्रभु से वरदान।।
पावन गंगा हैं निर्मल
बहती नदियां की धार।
नन्हे पौधे को बड़ा किया
दिए नेक तुमने संस्कार।।
आत्मविश्वास प्रतिभा गुणी
निज भावो के तुम भाषा।
प्रथम गुरू हो ईश्वर से ऊँचा
सुख दुःखो की परिभाषा।।
घर के जिम्मेदारी उठाती
संतानो पर लुटाए प्यार।
कोयल मीठी स्वर तेरी
मां भगवती जैसी संज्ञान।।
तुम मेरे पास हो मां तो
खुशियों का हैं खजाना।
जीवन से अंधकार मिटे
तुझसे ये रौशन जमाना।।
अंतर्मन में तुम बसे हो
बनकर अधरो की मुस्कान।
नित शिश झुकाऊं सदा मैं
मां के चरणो को प्रणाम।।