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जब जेई बने बिल्डर्स के रहनुमा: करोल बाग जोन में एमसीडी की बिल्डिंग डिपार्टमेंट पर उठे सवाल

नई दिल्ली । विशेष रिपोर्ट । विक्रम गोस्वामी

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के करोल बाग जोन के बिल्डिंग विभाग पर एक बार फिर गंभीर भ्रष्टाचार और लापरवाही के आरोप लगे हैं। ताज़ा आरटीआई जवाब ने इस विभाग के भीतर फैले “अवैध निर्माण सिंडिकेट” का पर्दाफाश कर दिया है।

आरटीआई के दस्तावेज बताते हैं कि विभाग के एक्सक्यूटिव इंजीनियर तरुण कृष्ण आर्य ने स्वयं स्वीकार किया है कि डीएमसी एक्ट के तहत कई अवैध निर्माणों पर कार्रवाई के आदेश दिए गए थे, लेकिन जूनियर इंजीनियर (JE) देवेंद्र कुमार ने अब तक किसी भी मामले में एक्शन टेकन रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत नहीं की है।

यह खुलासा एमसीडी की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े करता है — कि क्या एक जूनियर इंजीनियर अब पूरे जोन की कार्रवाई को ठप करने की ताकत रखता है?

आरटीआई से निकला सच: कार्रवाई सिर्फ़ काग़ज़ों में

आरटीआई में सामने आए दस्तावेज़ों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में करोल बाग जोन में दर्जनों अवैध निर्माणों की शिकायतें दर्ज हुईं, जिन पर कार्रवाई के आदेश जारी तो किए गए, परंतु जमीनी स्तर पर एक भी इमारत पर बुलडोज़र नहीं चला।

इस स्थिति ने साफ कर दिया है कि विभाग में “कार्रवाई” केवल फाइलों और जवाबी रिपोर्टों तक सीमित है।

सूत्र बताते हैं कि सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर ने भी इस लापरवाही पर कोई सवाल नहीं उठाया, जिससे संकेत मिलता है कि पूरी व्यवस्था एक संगठित नेटवर्क के तहत काम कर रही है — जिसमें जेई, ठेकेदार, बिल्डर और कुछ राजनीतिक संरक्षणदाता शामिल हैं।

अवैध निर्माणों का खुला खेल

करोल बाग, पहाड़गंज और आस-पास के इलाकों में अवैध निर्माण कोई नई बात नहीं। स्थानीय लोगों के मुताबिक़, “बिना रिश्वत दिए कोई भी निर्माण संभव नहीं है।”

एक स्थानीय निवासी ने बताया —

“हर मंज़िल के एवज में 5 से 10 लाख रुपये तक की रकम देनी पड़ती है। इसके बाद किसी अधिकारी की हिम्मत नहीं होती कि काम रोके।”

यह बयान इस बात की गवाही देता है कि एमसीडी का बिल्डिंग डिपार्टमेंट ‘वसूली तंत्र’ में तब्दील हो चुका है, जहां निरीक्षण से पहले ही ‘डील’ तय होती है।

प्रशासनिक चुप्पी और शिकायतों का गला घोंटना

जानकारी के अनुसार, एक महिला शिकायतकर्ता ने बार-बार डिप्टी कमिश्नर (DC) से मिलकर अवैध निर्माणों की शिकायत दर्ज कराई, लेकिन न तो सुनवाई हुई, न कार्रवाई।

सूत्रों का कहना है कि डिप्टी कमिश्नर ने बाद में शिकायतकर्ता से मिलना तक बंद कर दिया।

आरटीआई के दस्तावेज़ों में तरुण कृष्ण आर्य का बयान इस बात की पुष्टि करता है कि वरिष्ठ अधिकारी भी जूनियर इंजीनियर की मनमानी के आगे बेबस हैं।

सीवीसी की चेतावनी भी नज़रअंदाज़

सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (CVC) ने पहले ही एमसीडी के चीफ विजिलेंस ऑफिसर (CVO) को करोल बाग जोन के इंजीनियरों की भूमिका की जांच के स्पष्ट निर्देश दिए थे।

फिर भी, न तो किसी अधिकारी को सस्पेंड किया गया और न ही जांच आगे बढ़ी।

इससे यह सवाल उठता है कि क्या एमसीडी के भीतर भ्रष्टाचार इतना गहरा है कि सीवीसी के आदेश भी महज़ औपचारिकता बन गए हैं?

“सिस्टम” के कब्जे में एमसीडी

स्थानीय निवासियों और आरटीआई से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि करोल बाग जोन का बिल्डिंग विभाग अब “सिस्टम” के कब्जे में है —

एक ऐसा सिस्टम जो सिर्फ़ पैसों की भाषा समझता है और जहां ईमानदार अधिकारी हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं।

अब निगाहें कमिश्नर पर

अब समूची निगाहें एमसीडी कमिश्नर अश्विनी कुमार पर टिकी हैं, जिन्हें एक सख़्त और निष्पक्ष अधिकारी के रूप में जाना जाता है।

जनता का सवाल है —

“क्या इस बार वाकई दोषियों पर कार्रवाई होगी, या एक बार फिर फाइलें धूल फांकेंगी?”

अगर इस बार भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि

दिल्ली में अवैध निर्माण अब एमसीडी के संरक्षण में ही फल-फूल रहे हैं।

Bharat Samman

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