उत्तरप्रदेश – लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मीडिया की पहचान सभी जगह विद्यमान है। समय-समय पर इनके कई स्वरुप सामने आये है जैसे प्रिंट मीडिया (न्यूज़ पेपर/मैगज़ीन), ब्रॉडकास्ट मीडिया (टीवी/रेडियो), डिजिटल मीडिया (इंटरनेट/सोशल मीडिया) इत्यादि। पर इन तीनों मीडिया में आज भी सबसे सटीक विश्वसनीयता प्रिंट मीडिया की मौजूद है, हाँलाकि प्रिंट मीडिया में समय के साथ-साथ पाठको की संख्या में कमी आयी है।
आज के वर्तमान स्वरुप की बात करें तो प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया दोनों डिजिटल मीडिया पर भी आ गए है और सबसे तेजी से करोड़ों लोगों के मध्य पहुचनें की क्षमता भी इन्ही में विद्यमान है। बढ़तें इंटरनेट के उपयोग ने इसकी पहुँच देश के कोनें कोने में कर दी है। सभी वर्ग के लोगों ने अपना स्थान इस मीडिया में बनाना शुरू कर दिया है, इनके पास परम्परागत ज्ञान और तकनीक न होतें होए भी समय की पसंद बनतें जा रहें है। कही किसी जगह कोई न्यूज़ या जानकारी प्राप्त हुई उसे अपने कैमरे में कैद कर सोशल प्लेटफार्म पर डाल करके न केवल अनेकों लोग आय अर्जित कर रहें है बल्कि बिना किसी सीमा के लोगों तक पहुँच रहें है।
आज आपकी जानकारी में एक दो नहीं कई ऐसे लोगों के नाम होंगे जिन्होंने सोशल मीडिया के जरिये अपनी अलग पहचान बनायीं है। कई बड़े दिग्गज पत्रकार/एंकर अब मुख्य रूप से सोशल मीडिया पर ही मौजूद है। इसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की पलक झपकतें इन पर प्रसारित न्यूज़ के आधार पर बड़े निर्णय लेने के लिए सरकार और जिम्मेदार लोग बाध्य हो रहें है। परम्परागत मीडिया और कॉर्पोरेट घरानों की गिरती साख की वजह से समाज और आम लोगों की आवाज के रूप में डिजिटल मीडिया मुख्य भूमिका में उभर कर सामने आया है जहाँ देश के कोने-कोने से लोग पत्रकारिता में सामने आये है।
उत्तर प्रदेश के संभल की घटना ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है आज सभी समाचार पत्रों में इस घटना की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई है। जहाँ एक पत्रकार को पुलिस ने केस दर्ज कर महज इस लिए जेल में डाल दिया की उसने चुनाव के समय विकास को लेकर किये गए वादों के बारें में प्रश्न किया था।
इस मामले में समाजवादी पार्टी के मुखियां अखिलेश यादव ने कहा कि यह बीजेपी सरकार में इमरजेंसी और तानाशाही रवैया नहीं तो और क्या है? वही इस मामले पर प्रियंका गाँधी ने ट्विट करके लिखा की – “सत्ता पक्ष से सवाल पूछना, सत्ता पक्ष के वादों को याद दिलाना, जनता के मुद्दों को जन प्रतिनिधियों के सामने रखना एक पत्रकार की जिम्मेदारी होती है। लेकिन उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार को अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जेल भेज दिया गया।
भाजपा चाहती है मीडिया केवल स्तुति करें, सवाल न पूछे” महज प्रश्न पूछने से उस पत्रकार को हथकड़ी पहना कर रस्सियों से हाथ बांधकर ले जाया गया। हालाँकि उसे जमानत मिल चुकी है। हाल ही विधानसभा लखनऊ में नामी गिरामी समाचार पत्रों के पत्रकारों से मार्शलों ने धक्का मुक्की की और उन्हें पीटा भी, यह घटना भी सुर्खियों में था।
उत्तर प्रदेश सरकार का यह बयान भी सामने आया था कि – पत्रकारों को परेशांन न करें पुलिस, उन्हें अपना कार्य करने दे। पत्रकारों के साथ बदसलूकी, मारपीट, की घटना नयी नहीं है कई बार उन्हें जिन्दा जलाकर, दुर्घटना का रूप देकर मार भी दिया जाता है, कई पत्रकारों को फर्जी मुक़दमे में फसां कर जेल में डाल देना भी आम बात है। सरकार चाहे किसी की भी हो पत्रकारों से सहयोग सिर्फ अच्छी बातों का प्रचार-प्रसार का उनसे चाहिए पर उनके प्रश्नों और आलोचनाओं से सभी बचना चाहतें है।
जब चुनावी सरगर्मी होती है तो सभी तरह के पत्रकारों की अहमियत एकाएक बढ़ जाती है, उसके पश्चात् की स्थिति हमेशा सभी के सामने रही है। इसके दूसरें पहलू को यदि आप समझेगे तो ज्ञात होगा की पत्रकारों ने भी स्वयं अपनी अहमियत कम की है एक दो नहीं अनेकों ऐसे कार्य है जिन्हें पत्रकार लोग अब कर रहें है और इन्ही कार्यो की वजह से वो अपनी अहमियत खो दे रहें है साथ ही विषय वस्तु और पत्रकारिता से भी दूर होतें चलें जा रहे है।
सामाजिक, राजनैतिक और तकनीकी के परिवर्तन ने सभी क्षेत्रो की तरह मीडिया में डिजिटल स्वरुप में बड़ा बदलाव ला दिया है, जिसका स्वरुप अभी अपना अंतिम रूप नहीं ले पाया है अभी भी कई बड़े विवाद सामने आते रहतें है। आज भी आधिकारिक रूप से सोशल मीडिया पत्रकारों की प्रमाणिक पहचान नहीं है। जबकि इनकी जन स्वीकार्यता हर जगह हर क्षेत्र में विद्यमान है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में चल रहे नियम कानूनों में जरूरत है एक बड़े बदलाव की। सभी संस्थाओं और मान्यता देने वाली एजेंसियों को डिजिटल पत्रकारिता को स्वीकार करने की जरूरत है तथा सभी तरह के पत्रकारों के हितों को सुरक्षित करने के लिए स्पष्ट नियम और कानून बनाने की भी है। जिससे सभी श्रेणी के पत्रकार बिना किसी बाध्यता के जिम्मेदारों की जबावदेही पर प्रश्न पूछ सकें।
इन पत्रकारों को क्षेत्रीय समस्याओं की गहरी जानकारी होती है और हो रहे कार्यों और आवश्यकताओं का भी बड़ा ज्ञान होता है ऐसे में ये सरकार और जिम्मेदार से प्रश्न करके सच्चाई को सामने ला सकतें है और आम आदमी के हितों को सुरक्षित कर सकतें है। आज के वर्तमान राजनैतिक परिवेश में पक्ष या विपक्ष कोई भी सटीक और किये गए वादों पर प्रश्न नहीं सुनना चाहता।
आज से दो दशक पहले राजनेता न केवल प्रश्नों का जबाब देते थे बल्कि आलोचनाओं से घबरातें नहीं थे पर अब न प्रश्नों का स्थान रहा न आलोचनाओं का ऐसे में यह जरुरी है की सभी तरह की पत्रकारिता को को लेकर न केवल स्पष्ट नियम और कानून बनाये जाए बल्कि हर स्तर पर उन्हें लागू किया जाए। यदि सरकार ऐसा करने में सफल होती है पत्रकारों के खिलाफ अन्याय स्वतः बंद हो जायेगा।