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क्या सरगुजा और बस्तर में भी कका का यही जलवा है?

पिछले साढ़े 4 वर्षों में क्या बदला?

भारत सम्मान, अंबिकापुर – 1 नवंबर 2000 को अविभाजित मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ नया राज्य बना, पहले मुख्यमंत्री हुए अजीत जोगी इसके बाद 15 वर्षों तक बीजेपी के रमन सिंह, 17-18 वर्षों में यह राज्य वयस्क हो गया था परंतु छत्तीसगढ़ी संस्कृति, यहां की परंपराओं, खेल-कूद तथा तीज-त्योहारों को कभी तरजीह नहीं मिली। पिछले 18 वर्षों में किसी मंत्री, विधायक अथवा ब्यूरोक्रेट्स को देखकर कोई यह कह ही नहीं सकता था कि वे छत्तीसगढ़ शासन से संबंधित हैं।

आलोचनाएं तो बहुत हैं, सरकारों की आलोचना होनी भी चाहिए परंतु जो कुछ इन साढ़े चार साल में हुआ वो ऐतिहासिक है, मेरे अनुसार तो वर्तमान परिस्थितियों में किसी भी सरकार को 10 में 10 नंबर नहीं दिया जा सकता लेकिन निष्पक्ष समीक्षा भी जरूरी है, छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से ही इसे एक अलग पहचान दिए जाने की जरूरत थी जो नहीं हो सकी. विगत 15 वर्षों में भी लगता था जो कुछ चल रहा है, ठीक ही तो है ! रमन सिंह ने भी कभी सांप्रदायिकता को बढ़ावा नहीं दिया, भ्रष्टाचार एवं घोटालों का आदि हो चुका हमारा देश छत्तीसगढ़ के घोटालों पर भी कभी उद्वेलित नहीं हुआ। कुल-मिलाकर रमन सिंह सरकार के शुरू के 10 वर्ष सबको ठीक-ठाक ही लगे।

वर्तमान में भूपेश बघेल सरकार के साढ़े चार साल में जो काम हुआ उसे देखकर पता चलता है कि पिछले 18 वर्षों में क्या होना था जो नहीं हो पाया, ये बिल्कुल वैसा ही है कि जब तक आप डॉक्टर के पास आंख दिखाने नहीं जाते तब तक आपको पता ही नहीं चलता कि आपको चश्में की जरूरत भी थी, आपको तो लगता है इससे छोटे अक्षर पढ़े ही नहीं जा सकते लेकिन जब सही लेंस लगाया जाता है तब पता चलता है कि इतना स्पष्ट भी दिखाई दे सकता था क्या? ठीक इसी तर्ज पर भूपेश बघेल सरकार ने छत्तीसगढ़ की अस्मिता एवं संस्कृति को उभार कर जो नई पहचान दी है तब हमारे जेहन रूपी आंख में छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया की छवि साफ हुई है।

जब बोरे-बासी को सम्मान मिला, जब छोटे से लेकर बड़ा व्यक्ति इसे खाता हुआ दिखा तो कहीं ना कहीं यह मन को छू लिया, भ्रष्ट सिस्टम की खामियों, आम जनता में जागरूकता एवं शिक्षा की कमी का लाभ उठाकर चोरी-चकारी करके, संसाधनों की लूट-पाट से जो लोग अकूत संपति के मालिक हैं यदि उन्हें छोड़ दें तो शेष आप और हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने बोरे-बासी ना खाया हो परंतु इसे गरीबी और शर्म का द्योतक मानने वालों की संख्या ज्यादा थी। लोग अब गर्व से बताते हैं कि बोरे-बासी उसने भी खाई है।

मार्केटिंग और कॉरपोरेट जगत के दिखावे से भरे क्रिकेट खेल को फैशन मानने वाले शायद ही गेड़ी, पिट्ठुल-गेंदा, गुल्ली-डंडा, कबड्डी या फुगड़ी, बाटी(कंचे) पर इससे पहले कभी बात करते दिखे हों, जबकि ये सब खेल जिसने भी बचपन में खेला होगा उसे आज इन खेलों को छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की सूची में देखकर अनायास ही गर्व होता होगा, एक अपनापन सा लगता है, कई बार हम भावुक भी हो जाते हैं।

नवंबर 2019 में जब ‘अरपा पैरी के धार..’ को छत्तीसगढ़ का राज्य गीत का दर्जा मिला तब से इस गीत को विभिन्न आयोजनों में सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है, सी-मार्ट के खुलने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती तो मिल ही रही है साथ ही सभी के पास छत्तीसगढ़ के ग्रामीण उद्योग के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूहों, शिल्पियों, बुनकरों, दस्तकारों, कुम्भकारों अथवा अन्य पारंपरिक एवं कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पादों का विक्रय किया जा रहा है, इससे आसानी से शहरों के ड्राइंग रूम तक छत्तीसगढ़ की पहचान अपना आकार ले रही है।

मिलेट के रूप में कोदो, कुटकी जिन्हें किसान लगभग भूलते जा रहे थे उसे पुनर्जीवित करने का सफल प्रयास, 65 प्रकार के वनोपजों की खरीदी तथा किसानों के हित के प्रयास अपने आप में सराहनीय हैं, कृषि से लेकर तीज-त्योहारों में हरेली, तीजा, पोरा भोजली को पहचान देना,खेलों तथा भाषा एवं बोली सभी माध्यम से जो पहचान छत्तीसगढ़ को पिछले 4.5 वर्षों के अल्प समयावधि में मिली है उसे देखकर अब लगता है कि पिछली सरकारों में चाहे वो 3 साल कांग्रेस की हो या 15 साल भाजपा की सरकार रही हो उसमें इस तरह के कार्य होने थे जो नहीं हुए।

भारत में बहुसंख्यकों के आराध्य ‘श्री राम’ वनगमन पथ का निर्माण एवं छत्तीसगढ़ को ‘श्री राम’ के ननिहाल के रूप में पहचान देना, छत्तीसगढ़ की पौराणिक एवं आध्यात्मिक इतिहास को बताता है, इतना ही नहीं ‘राष्ट्रीय रामायण महोत्सव’ के रूप में देश में ऐतिहासिक कार्य संपन्न हुआ।

सरकारों के काम-काज की प्रसंशा करना अथवा मुख्यमंत्री का गुणगान करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, इस लेख को यदि अन्यथा संदर्भ में आप लेते हैं तो आपकी आलोचनाओं का स्वागत है। जनहित में शासन-प्रशासन एवं मंत्रियों की जितनी आलोचना, मैंने एवं मेरे सहयोगियों ने पिछले 4 वर्षों में किया है उतना पिछले 18 वर्षों में कभी नहीं किया था अतः ना तो सरकार से मुझे कोई लाभ है ना ही ‘नक्कार खाने में तूती की आवाज’ की तरह मंत्रालयों अथवा मुख्यमंत्री तक मेरे लिखे-पढ़े की कोई पहुंच ही है जिससे मैं सरकार का गुणगान करूँ, मेरा उद्देश्य सिर्फ यह बताना है कि छत्तीसगढ़िया गौरव एवं संस्कृति के लिए जो पहल वर्तमान भूपेश बघेल सरकार ने की है वैसा पिछले 18 वर्षों में नहीं हुआ।

अब तक के सार्वजनिक भाषणों, साक्षात्कारों आदि को देखें तो भूपेश बघेल हाजिर जवाब, स्पष्टवादी एवं खरखर प्रवृति के नेता प्रतीत होते हैं. नेतृत्व क्षमता में शायद ही देशव्यापी कोई कांग्रेस लीडर वर्तमान में दिखाई देता हो जिसने अपने प्रतिद्वंद्वी विपक्षी पार्टी को इस कदर हाशिए में डालने में सफलता पायी हो। लगातार जन-संपर्क करते हुए खुद की पार्टी में भितरघातियों का मुक़ाबला करके भी भूपेश बघेल लगभग सभी ‘गोदी-मीडिया’ के एंकरों की अच्छी-खासी फ़जीहत करने में सफल होते हैं. लगातार ईडी के छापेमारी, केंद्र सरकार के पक्षपात रवैये अपनी पार्टी के विभीषणों को झेलते हुए भूपेश ने अब तक आम छत्तीसगढ़िया के दिल में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है।

भूपेश से चिढ़ने वालों में मैंने देखा है या तो ज्यादातर राजनीति से प्रेरित लोग हैं अथवा ऐसे लोग हैं जिन्हें यह बर्दाश्त नहीं होता कि एक आम आदमी की तरह सड़क पर बैठकर ‘जिंदाबाद’, ‘मुर्दाबाद’ करने वाला व्यक्ति मुख्यमंत्री कैसे बना हुआ है! अन्य राज्यों से पलायन करके आए हुए ऐसे लोग जिनके सिर पर जातीय श्रेष्ठता चढ़ी होती है वे किसी ओबीसी को इतने बड़े पद पर बर्दाश्त नहीं कर पाते वे मुखर होकर भूपेश को कोसते हैं। हर भष्ट्र अधिकारी ना जाने क्यों रमन सरकार की तारीफ करते नहीं थकता!

बावजूद इन सबके भूपेश बघेल अब तक सरगुजा जैसे दूरस्थ क्षेत्र में अपनी योजनाओं को पहुंचाने, ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा में काबू पाने में, भू-माफियाओं एवं तस्करों के विरुद्ध ठोस कार्यवाही की पहल कर पाने में अब तक नाकाम रहे हैं, मैं हमेशा कहता हूँ पुलिस विभाग में नवाचार करने का साहस जिस दिन वो दिखाएंगे, बस्तर एंव सरगुजा में भी उन्हें वैसी ही यश और ख्याति प्राप्त होगी जैसी अन्य जगहों पर है। छत्तीसगढ़ में अब भी अपार विकास एवं पहचान की असिमित संभावनाएं हैं।

नोट: यह समीक्षा विभिन्न वर्गों के लोगों से बातचीत एवं व्यक्तिगत आंकलन पर आधारित है – अकील अहमद अंसारी

यह लेख अकील अहमद अंसारी असिस्टेंट प्रोफेसर, अंबिकापुर सरगुजा छत्तीसगढ़ के फेसबुक वाल से लिया गया है।

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