लेखिका सम्पति चौरे की कलम से गजल और शिव अराधना

सम्पति चौरे की कलम से गजल
मेहनत मजदूरो की बेकार नही जायेगी
जिंदगी अब उसकी लाचार नही जायेगी।
मौसम की हर परिस्थितियो को सहता है
मंहगाई सरकार की स्वीकार नही जायेगी।
पेट की भूख मिटाने को करता है परिश्रम
पसीना कम भावो में बाज़ार नही जायेगी।
कलम किताबो के लिए मजबुर हो गए।
मासूम बच्चो के कभी संस्कार एलनही जायेगी।
मन के अमीर मजदुर अपमान भी सहते है
पर अच्छे दिनो की इंतजार नही जायेगी।
कांधे पर बोझ उठा चलता पैदल पथ पर
ख्वाब महलो के कभी साकार नही जायेगी।
श्रमिको की मेहनत से चलती सारी दुनिया
उनके चेहरो से अब मुस्कान नही जायेगी।
शिव अराधना…
शिव-शिव-शिव, शिव निराकार है।
शिव की महिमा, जगत में अपार है।
त्रिलोचन से बड़ा न कोई दानी,
जग के पालनहार है।
हिंसा अंहकार का दमन करते पापियों के संहारक है।
घोर निराशा पल जैसे, आशा का संवाहक है।
मन मेरा बना शिवालय, चरणो में मुक्तिद्वार है।
संपूर्ण सृष्टि पर अधिकार, तपस्वी त्यागी महाकाल, अविनाशी है।
नश्वरता जीवन का अनंत सत्य, सौम्य रुद्र भयंकर है।
कैलाश निवासी भोले, अलख निरंजन है।
शिश पर चांद शोभे, जटा मे गंगा विराजे है।
काम क्रोध लोभ और मद का धरते रूप अनोखे है।
जिस पर हो शंभू की कृपा-दृष्टि वो पल तर जायेगा।
जन्म मृत्यु के सारे बंधन से मुक्त हो जायेगा।



