क्या छत्तीसगढ़ में चल रहा नौकरशाहों का राज – अकील

अम्बिकापुर, भारत सम्मान – ऐसा प्रतीत होता है कि सड़क निर्माण एवं मरम्मत करवाना भी अब न्याय पाने के समान हो गया है संभवतः इसीलिए अब मंत्री एवं विधायकों को छोड़कर न्यायालय की शरण में जाना पड़ रहा है. ऐसे में क्या अब अपने-अपने क्षेत्र की सड़कों को बनवाने के लिए हमें भी जनहित में याचिका लगानी पड़ेगी..?
बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वर्तमान सरकार हर मोर्चे पर फेल नज़र आ रही है, इसकी इतनी जल्दी उम्मीद नहीं थी, कम से कम शुरू के 2 या तीन साल तो बिल्कुल भी नहीं. कांग्रेस के कई नेता बहुत खुश नज़र आ रहे हैं कि उन्हें मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी और भाजपा से त्रस्त होकर लोग अगली दफ़ा उन्हें जीता देंगे।

आग़ाज़ ऐसा है तो अंजाम कैसा होगा?
इस सरकार की तुलना में कांग्रेस की पिछली सरकार की शुरुआत तो कम से कम ठीक ही रही थी, भूपेश बघेल बतौर मुख्यमंत्री अपनी तेज तर्रार छवि में नज़र आए, कई अच्छी योजनाओं को भी लांच किया लेकिन जल्द ही मुख्यमंत्री के पद को लेकर ढाई-ढाई साल का संशय बना रहा ऊपर से कोरोना जैसी महामारी में भी समय बर्बाद हुआ, बाद में भूपेश बघेल ख़ुद भी अपने शुरुआती दौर वाले छवि से भटक गए, उनकी ‘भेंट-मुलाक़ात’ कार्यक्रम शुरुआत में तो ठीक था लेकिन उत्तरी छत्तीसगढ़ के भटगाँव में एक महिला के हंगामा खड़ा करने के बाद जितने कार्यक्रम हुए उन्हें जानकारों ने ‘सेट-मुलाक़ात’ की संज्ञा देनी शुरू कर दी अर्थात् प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रायोजित कार्यक्रमों की तरह भूपेश बघेल भी सुनियोजित जन-संपर्क करते दिखे।
कांग्रेस की पिछली सरकार में हर सरकार की तरह कमी-बेशी हो सकती है परंतु एक कसावट तो ज़रूर थी, ब्यूरोक्रेट्स (नौकरशाहों ) में भूपेश बघेल का ख़ौफ़ तो था जो वर्तमान शासन में ना के बराबर है, यह सरकार तो अपने शुरुआती दौर में ही बदनाम होती दिख रही है, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, वित्त-मंत्री किसकी चल रही है ? सरकार कौन चला रहा है इसे लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है, कई स्थानों में तो प्रशासनिक अधिकारी, मंत्रियों एवं विधायकों से भी ऊपर नज़र आ रहे हैं ऐसे क्षेत्रों के भाजपा के विधायक एवं कुछ मंत्री अपनी इज्ज़त बचाने में लगे हुए हैं साधारण भाषा में बोलें तो कलेक्टर/एसपी एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी विधायकों की सुन ही नहीं रहे हैं।
भाजपा के सक्षम नेताओं की हुई उपेक्षा?
देखिए आप और हम नेताओं को लाख कोसें लेकिन जो जमीन से जुड़े नेता हैं जिन्होंने घर-घर जाकर वोट मांगा है, जिनके घर सुबह से लोगों का आना-जाना लगा रहता है, उन्हें आमजनों की समस्याओं के विषय में ठीक ठाक पता होता है, लोगों से वे जुड़े होते हैं जबकि ब्यूरोक्रेट्स में एरिस्टोक्रेसी कूट कूट कर भरी होती है, ये समस्या का समाधान व्यावहारिक रूप से कर ही नहीं सकते, सरकारी कामों को लेकर अक्सर जनता इन्ही के कारण परेशान होती है वास्तव में ये शोषक वर्ग की श्रेणी में आते हैं, अब जब शोषक वर्ग के भरोसे सत्ता चलाएंगे तो नतीजा वही आयेगा जो अभी दिख रहा है।
मंत्रिमंडल हो या अन्य पद, सक्षम एवं सशक्त जनप्रतिनिधियों को उचित दायित्व नहीं दिए जाने से प्रशासनिक अधिकारियों पर नियंत्रण का अभाव रहता है इसी कारण चाहे प्रदेश की सड़कें हों, कानून-व्यवस्था अथवा सरकार की जवाबदेही सब मोर्चों पर यह सरकार पिछड़ती जा रही है. भूपेश सरकार को चिट्ठी लिखो तो भले ही कुछ होना जाना नहीं रहता था लेकिन कम से कम मुख्यमंत्री कार्यालय से प्रतिउत्तर तो जरूर आता था लेकिन इस सरकार में तो वह भी नहीं है. भाजपा के कई योग्य और कर्मठ नेताओं को ना तो कोई दायित्व दिया गया है ना उनकी कोई सुनने वाला है उल्टे ख़ुद उन पर हो रहे अन्याय पर वे समझ नहीं पा रहे कि अपनी ही सरकार का विरोध कैसे करें।
जनता पर कहर बनकर टूट रही है सरकार?
भूतपूर्व कलेक्टर और अब वित्त-मंत्री ओ.पी. चौधरी ने जो क़हर बनाकर टूटने की बात कही थी वर्तमान सरकार उसे सच करने पर तुली हुई है, अनुभवहीन एवं अयोग्य लोगों को बड़ी जिम्मेदारियाँ देने पर वे प्रशासनिक अधिकारियों के बहकावे में आ जाते हैं, सत्ता में भीतर तक घुसे दलाल कांग्रेस के समय भी और अब भी इन्हें गुमराह करके अपना उल्लू सीधा करते हैं, इनकी निर्णय लेने की क्षमता की कमी के कारण व्यवस्था ख़राब होती है नतीजा बदहाल सड़कें, बदतर क़ानून व्यवस्था, बर्बर पुलिस का अत्याचार, घोर अव्यवस्था यह सब कहर बनकर ही तो टूट रहे हैं आम जनता पर.. क्या कुछ उम्मीद है कि यह सरकार सच्चाई का सामना करके कुछ सुधार करेगी? या बैठे बिठाए फिर उसी कांग्रेस की तरफ़ सत्ता खिसक जाएगी जिससे परेशान होकर प्रदेश की जनता ने भाजपा की सरकार बनाई थी?
भाजपा के नेतागण सोचिएगा ज़रूर – अकील
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