छत्तीसगढ़, रायपुर, भारत सम्मान – बीते दिनों उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में कांग्रेस का संभागीय सम्मेलन संपन्न हुआ चूँकि उक्त सम्मेलन कैबिनेट मंत्री टीएस सिंह देव के गृह नगर में आयोजित हुआ अतः यह सम्मेलन विशेष चर्चा में है. टीएस सिंह देव एवं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मध्य मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जो मनमुटाव होता रहा है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है।
उक्त सम्मेलन में टीएस सिंह देव ने खुलकर अपनी भड़ास निकाली जिसमें उन्होंने बेबाकी से बताया कि उन्हें भाजपा के अतिरिक्त अन्य विपक्षी दलों से भी न्योता मिलता है. उन्होंने दिल्ली के अशोका होटल में केंद्र सरकार के कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से गुप्त वार्ता की बात भी बेबाकी से स्वीकार किया. मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार राजेश तिवारी की बात का जवाब देते हुए अपने वक्तव्य में टीएस सिंहदेव ने कहा “केंद्र के कैबिनेट मंत्री लोगों ने भी बात करके बोला कि आ जाओ आप, सब बात हो गयी है, ऊपर तक बात हो गयी है, दोनो से बात हो गयी है..दिल्ली का एक होटल है अशोका होटल वहां के गुपचुप कमरे में हमलोग बैठे, बात हुई..जो मिलाने वाले थे उनसे मैंने कहा कि मैं बीजेपी ज्वॉइन नहीं करूंगा फिर भी वे मिलना चाहते हैं तो ठीक है मैं चाय पीऊंगा.. उनका आदर करता हूँ.. उन्होंने अभी भी उसको जिंदा रखा है.. खिड़की खोलकर रखे हुए हैं (हंसते हुए)”।
उक्त सम्मेलन में टीएस सिंह देव ने मंच में आते ही 1983 से लेकर 2023 तक स्वयं के राजनैतिक सफर के विषय में बताया. उन्होंने बड़ी बेबाकी से बताया कि ना केवल बीजेपी से बल्कि अन्य विपक्षी दलों से भी उन्हें ऑफर आया है इसके बाद उन्होंने भूपेश बघेल और अपने बीच के रिश्तों को लेकर खुलासा किया और जानकारी दी कि किस प्रकार मुख्यमंत्री और उनके बीच दूरियां बढ़ीं।
टीएस सिंह देव के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपना भाषण शुरू किया. उन्होंने टीएस सिंह देव द्वारा विदेश में जाकर आसमान से कूदने की बात की तारीफ करते हुए सबको हंसाने के अंदाज से अपनी बात शुरू की. परंतु जल्द ही उन्होंने तंज कसते हुए कहा की राजा रजवाड़ों की बात करें तो सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग तथा आधुनिक काल में कितने राजे-राजवाड़े हुए परंतु लोग कितने राजा-रजवाड़ों को याद रख पाए? उन्होंने सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग से राजा हरिश्चंद्र का नाम गिनाते हुए आधुनिक युग में महाराणा प्रताप का नाम लिया तथा उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप अकबर के आगे झुके नहीं, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने थोड़ी देर बाद अपने सरकार की योजनाएं गिनानी शुरू कर दीं तथा भाजपा पर जमकर निशाना साधा।
यहां तक की बात तो मीडिया और अखबारों के माध्यम से आप सभी जानते ही होंगे परंतु कार्यक्रम के दौरान ही टी एस सिंह देव के द्वारा बकायदा कार्यकर्ताओं को हिदायत दी गई उन्होंने कहा कि “कोई रिकॉर्डिंग कर रहे होंगे तो चलाइएगा मत कहीं..” इसके बाद भी पब्लिक प्लेस पर प्राइवेट टॉकिंग कहां संभव है! उक्त सम्मेलन का ऑडियो वायरल होना था जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, चूंकि वायरल ऑडियो 1 घंटे से ज्यादा लंबे समय का है अतः उसकी प्रमुख बातों को लिखने के बाद यथासंभव निष्पक्ष समीक्षा यहां प्रस्तुत है जो आपको मुख्य धारा की मीडिया नहीं बताएगी.
नोट: यदि राजनीति में आपकी दिलचस्पी नहीं है तो बिल्कुल भी इससे आगे आपको नहीं पढ़ना चाहिए क्योंकि पोस्ट थोड़ा लंबा हो सकता है।
अपने बयानों में ज्ञान बांटने की मुद्रा में होते हैं टीएस सिंहदेव?
टीएस सिंह देव कई मौकों पर यह बता चुके हैं कि उनकी राजनीति में आने की कोई भी रुचि नहीं थी तथा गलती से वे राजनीति में आ गए. उक्त सम्मेलन में भी उन्होंने इसे दोहराया. अब उनके अनुसार एक तरफ तो राजनीति में उनका आना एक्सीडेंटल है तो दूसरी तरफ वह हमेशा किसी राजनीतिक गुरु की भांति बातें करते नज़र आते हैं. टीएस सिंहदेव के लगभग सभी वक्तव्यों में, पूर्ण वाक्यों एवं प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट बात कहने की भाषा-शैली की साफतौर पर कमी होती है, वे इस तरीके से लोगों में ज्ञान बांटने के अंदाज में अपनी बात कहते हैं जैसे किसी पत्रकार या नागरिक को राजनीति की बातों की कोई भी जानकारी तनिक भी है ही नहीं।
यदि उनके वक्तव्यों को ध्यान से सुनें तो ‘ऐसा होता है..’ ‘वैसा होता है..’ ‘ऐसा किया जाता है’ जैसे शब्दों की बहुलता होती है।
यदि टीएस सिंह देव के वक्तव्य के कुछ उदाहरण लें तो वह हमेशा लोगों को राजनीति में शिक्षित करने की मुद्रा में होते हैं उदाहरण के तौर पर जब भी उनसे विगत 4.5 वर्षों में पत्रकारों के द्वारा पूछा जाता था की ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री की बात हुई थी उसका क्या हुआ तो टीएस सिंह देव यह कहते हुए पाए गए:-
“अंदर की बात होती है उसे बाहर सार्वजनिक नहीं किया जाता”
“ऊपर की बातें होतीं हैं, अलाकमान को तय करना होता है”
उक्त संभागीय सम्मेलन से बाहर निकलने के बाद भी भाजपा से ऑफर आने वाली बात पर पत्रकारों को वह जानकारी देने कि मुद्रा में कहते हैं: “ऑपरेशन लोटस की बात नहीं है, देखिए यदि कहीं किसी को लगता है कि कहीं गुंजाइश है तो हर राजनीतिक दल पहल करता है”।
अब यदि टीएस सिंह देव राजनीति में इतने ही विद्वान हैं तो उन्हें यह पता होना चाहिए कि वह प्रदेश कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा की उपस्थिति में सभी कार्यकर्ताओं के बीच इस बात की स्वीकारोक्ति दे रहे हैं कि केंद्र की भाजपा सरकार के कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से दिल्ली के अशोका होटल में गुप्त रूप से वे मिले हैं और यह संदेश भिजवाएं हैं कि भले ही वो कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे परंतु उनसे मिलते रहेंगे।
पैसे खर्च कर मीडिया मैनेजमेंट करते हैं टीएस सिंहदेव?
टीएस सिंहदेव के पास विरासत में मिली हुई धन-संपदा है ऐसा माना जा रहा है कि उसी धनबल से वे प्रदेश एवं देश स्तर पर मीडिया मैनेजमेंट से कांग्रेस आलाकमान सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं तक यह खबर पहुंचाने में सफल हुए हैं कि सरगुजा में पूरे 14 विधानसभा सीटों पर उनकी पकड़ अच्छी है, संभवतः इसीलिए वे कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने का अप्रत्यक्ष प्रयास कर रहे होंगे कि उन्हें आज भी भाजपा एवं अन्य विपक्षी दलों से खुला ऑफर मिल रहा है, यदि उनको अनदेखा किया गया तो वे कांग्रेस पार्टी छोड़कर 14 सीटों में प्रभाव डालकर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर सकते हैं।
परंतु क्या सच में 14 सीटों पर टीएस सिंहदेव इतना प्रभाव रखते हैं?
देखिए राजनीति में यदि कोई नेता मुखिया बनने का दबाव बनाना चाहता है तो यह संख्याबल से ही संभव है, टीएस सिंहदेव बड़े नाम हो सकते हैं परंतु 14 सीटों में उनकी पकड़ की बात जमीनी स्तर पर कोसो दूर है. किसी भी माध्यम से सर्वे करा लेने पर स्पष्ट पता चल जाएगा कि उनके प्रभाव में कभी भी 14 विधायक नहीं रहे. हाँ ये जरूर है कि प्रेमनगर विधायक खेल साय सिंह, लुंड्रा विधायक प्रीतम राम एवं स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह उनके करीबी माने जाते हैं परंतु कांग्रेस छोड़ने पर या भूपेश बघेल के विरुद्ध जाने की बात जब भी आती है तो ये तीनों भी न्यूट्रल हो जाते हैं इसका प्रमाण है कि पूरे 4.5 वर्ष में कभी भी इन्होंने कोई भी ऐसा सार्वजनिक बयान नहीं दिया जिससे ये कहा जा सकता हो कि वे टीएस समर्थक हैं।
क्या टीएस खुद हार जाएंगे इस बार का चुनाव?
सीतापुर विधानसभा से विधायक एवं खाद्यमंत्री अमरजीत भगत शुरू से टीएस विरोधी माने जाते रहे हैं, रामानुजगंज विधायक बृहस्पति सिंह टीएस के कट्टर विरोधी हैं ही. इन सब के अतिरिक्त टीएस सिंहदेव के अत्यंत करीबी पार्षद तक की जब रायपुर के महापौर एजाज ढेबर के माध्यम से भूपेश बघेल खेमें में सांठगांठ की खबरें, राजनीति के गलियारों में तैरती रहती हैं तो ऐसे में 10-11 विधायकों के समर्थन की बात तो छोड़ ही दीजिए. जानकारों का तो कहना है इस बार टीएस सिंह देव का स्वयं अपनी सीट से जीतना मुश्किल है. कुछ हद तक उन्हें खुद भी इस बात का एहसास हो गया है शायद यही कारण है कि संभागीय सम्मेलन में भाषण देते हुए उन्होंने एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर से अपनी बात शुरू की. कुछ दिन पहले उनके द्वारा मीडिया में यह कहना कि उनका इस बार चुनाव लड़ने का मन नहीं है यह भी, कहीं ना कहीं इस ओर ही इशारा करता है कि उनकी खुद की सीट संकट में है।
क्या मात्र व्यक्तिगत महत्वकांक्षा के लिए राजनीति करते हैं सिंहदेव?
वास्तव में जो भी टीएस सिंहदेव की राजनीति को करीब से जानते हैं उन्हें पता है कि टीएस सिंहदेव कभी भी ना तो जनपक्षीय राजनीति किए, ना ही उनकी आस्था पार्टी के प्रति कभी वैसी दिखी है जैसी होनी चाहिए. वे तो खुद के व्यक्तिगत कद को बढ़ाने में एवं किसी तरह से विरासत की रसूख को वर्तमान में चुनाव के माध्यम से वापस प्राप्त करने का प्रयास भर करते दिखते हैं. उक्त सम्मेलन में भी उनका पूरा भाषण अपने ही ऑटो-बायोग्राफी को समर्पित था। पूरे साढ़े चार साल के समय में उन्होंने कभी ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री की बात तो कभी सत्ता में उनका चलता नहीं है या उनकी उपेक्षा हो रही है आदि बातें ही मीडिया में कहकर अपनी सरकार की मुश्किलें बढ़ाई हैं. उन्होंने शायद ही कभी किसी जनहित के मुद्दे पर सुर्खियां बटोरीं हों उल्टे उनके गृह-नगर का सरकारी अस्पताल हमेशा घोर-विवादों में रहा है।
भूपेश बघेल के बिछाए जाल में फंस गए टीएस सिंहदेव?
हाल ही के उनके भाषणों एवं मीडिया पर दिए गए बयानों पर गौर करें तो टीएस सिंहदेव ने कहा है कि “एक दो लोगों को छोड़कर उन्हें हर कोई यही कहता दिख रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आ रही है..” क्या इस बयान के ये मायने हैं कि टीएस सिंहदेव जान चुके हैं कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार पुनः बनने के आसार दिख रहे हैं इसीलिए उक्त संभागीय सम्मेलन में जब उन्हें मनाने की कोशिशें की गईं तो उन्होंने भी सरेंडर कर दिया? सम्मेलन में भले ही खुद को टीएस सिंहदेव राजनीति में माहिर खिलाड़ी समझकर भाषण दिए हों परंतु सत्ता के गलियारों में यह खबर है कि “भूपेश के बिछाए जाल में फंस गए टीएस सिंहदेव” जब मुख्यमंत्री के सलाहकार राजेश तिवारी ने टीएस के भाजपा में जाने की बात छेड़ी तो दिल्ली के होटल में गुपचुप तरीके से मिलने की बात का रहस्योद्घाटन करके सिंहदेव ने अलाकमान की नज़र में खुद की विश्वसनीयता एवं राजनीति को हाशिए पर डाल दिया।
क्या छत्तीसगढ़ में ईडी के छापों का टीएस-रमन के रिश्तों से कोई वास्ता है?
वर्तमान में जब विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार पर यह आरोप लगा रही हैं कि भाजपा ईडी और सीबीआई के दम पर ‘ऑपरेशन लोटस’ चला रही है, छत्तीसगढ़ में भी ईडी के द्वारा ताबड़तोड़ कार्यवाहियां हो रही हैं, ऐसी परिस्थितियों में जब देश का समूचा विपक्ष एकजुटता की बात कर रहा है. नीतीश कुमार बाकायदा इसके लिए बैठकें कर रहे हैं, ऐसे में टीएस के द्वारा यह कहना कि ‘भाजपा ने उनके लिए खिड़की खोल रखी है, वे उनसे मिलते रहेंगे, वे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की आदर करते हैं। अब ऐसे में कांग्रेस आलाकमान टीएस सिंह देव पर कैसे भरोसा करेगी? क्या आलाकमान को यकीन होगा कि यदि भविष्य में टीएस सिंहदेव को कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाती है तो क्या वह पूरी निष्ठा के साथ कांग्रेस के पक्ष में काम करेंगे? अब इस बात पर लोग यकीन क्यों न करें की कथित तौर पर रमन सिंह के साथ उनके करीबी रिश्ते होने के कारण एवं केंद्र के मंत्रियों से सांठगांठ का छत्तीसगढ़ में ईडी के छापों के साथ सीधा कनेक्शन है।
ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री की बात महज अफवाह थी?
सरगुजा एवं पैलेस की राजनीति पर अपनी पूर्व की समीक्षाओं में मैंने कई बार यह दावा किया था कि ढाई-ढाई साल की बात टीएस सिंहदेव एक सोची-समझी रणनीति के तहत करते हैं. खुद के बारे में पैसे खर्च करके पेड-न्यूज चलवाकर किसी बड़े पद पर आसीन होने की संभावनाएं गढ़ने कि राजनीति बहुत ही घिसी-पिटी एवं पुरानी है. उत्तर भारत की राजनीति में, राजनेताओं के पास दिखने वाली भीड़ में ज्यादातर समर्थक मौकापरस्त एवं व्यक्तिगत लाभ के लिए टिके होते हैं अब ऐसे में यदि यह संशय डाल दिया जाए कि उक्त नेता मुख्यमंत्री बन सकता है तो ऐसे मौकापरस्त लोगों एवं शासन के अधिकारियों में थोड़ा लालच एवं भय तो व्याप्त हो ही जाता है।
टीएस सिंहदेव को अपना राजनैतिक गुरु मानने वाले उनके मातहत कुछ पार्षद एवं नेताओं द्वारा भी इसी तरह की ट्रिक अपनाई जा रही है ऐसे नेता खुद के लिए कुछ अफ़वाह क़ायम करके रखते हैं कि अमुक कारण से फलां सीट से उन्हें विधायक का टिकट मिलने वाला है, किसी घटनाक्रम के बाद अमुक कारण से अब वह प्रदेश स्तर का नेता बनने वाला है. इस तरह के बनावटी कयासों की राजनीति का लाभ यह होता है कि आप समर्थक जुटाए रखते हैं, हवाबाजी में आपके कई अटके हुए काम पूरे हो जाते है परंतु इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होता है कि समय बीत जाने के बाद विश्वसनीयता में बहुत बड़ी गिरावट होने से रहा-सहा मान-सम्मान भी चला जाता है इसका दुष्परिणाम इस बार के चुनाव में सरगुज़ा में देखने को मिलेगा।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने उद्बोधन में महाराणा प्रताप का जिक्र किया, महाराणा प्रताप ने स्वाभिमान के कारण घांस की रोटियां खानी पसंद की थीं परंतु झुकना नहीं ! यदि टीएस सिंह देव ने विरोध की राजनीति ही करने की ठानी थी तो उसका भी एक दर्जा है, राजनीति में विरोधियों का भी अलग सम्मान है. परंतु सम्मेलन से बाहर आकर जय-वीरू की जोड़ी के जवाब में भूपेश बघेल ने जब उन्हें पुकारा तो टीएस सिंह देव झुकते हुए पीछे आकर खड़े हो गए, टीएस सिंह देव ने उस दिन काले जैकेट के साथ कुछ मालाएं पहनी हुईं थीं. अब मुख्यधारा की मीडिया ने भले ही इस मिलाप को ‘जय-वीरू’ की जोड़ी कहकर खबर चलाया हो परंतु आप खुद देखकर तय करें कि जय-वीरू से ज्यादा अब ये मुन्ना-सर्किट की जोड़ी लग रही है या नहीं?
राजनीति समीक्षा की यह खबर छत्तीसगढ़, सरगुजा के असिस्टेंट प्रोफेसर अकील अहमद अंसारी के फेसबुक वॉल से ली गई है।