यादों का सिलसिला – अमरप्रीत

तेरी याद ना जाने मुझे कहाँ तक ले जाती है,
उलझती है पहले और कुछ ना कुछ तो शायद कहती है,
क्या बताऊँ अब मैं तुझे कि ये याद इन्सानों को ना जाने क्या से क्या रूप दिखा दे जाती है,
तुझको, मुझको, और हर एक, सब को अपने आप से मिलाती है,
खुद की एक सही या ग़लत हर तरह की कुछ पहचान कराती है,
जो इन यादों से कुछ सीख जाएगा वो समझदार कहलाता है,
बाकी जो इन यादों से कुछ ना समझे वो नासमझ हो जाता है,
कैसे इनका सही उपाय किया जाए, कैसे इसे कुछ ना कुछ हर पल सिखाया जाए,
कई फैसले ये याद हमें दे जाती है, कितनी ही दुविधा हो हर एक को सुलझती है,
बस गौर करने की देर होती है हमें, फिर देखना ये याद क्या-क्या गुल खिलाती हैं,
याद में रह कर याद को सोचो तब ना होगा हर एक मामले का हल,
याद ही को जब याद कर ना सोचोगे तो कैसे पाओगे इसका कोई भी फल,
महसूस करो अपने अंदर इस यादों के कमाल ताकत को, तब शायद अपनी उलझी जिंदगी को कुछ सुलझा पाओगे,
किसी और की यादो में क्या जाना जब अपना पास ही हो और अंदर सब कुछ है,
अपने अंदर की यादों को उभारो तब ना जानोगे कि किसकी याद में कितना दम है,
याद अपनी हो तो उसका अलग ही एक मजा है, फिर देखना कि तेरी और मेरी राहों में ना ही कोई गम है,
ना किसी का कुछ जाना है, ना किसी को कुछ आता है, जो है तेरी अपनी याद, वही एक मंजिल तक पहुँचेगी,
जहांँ तक तेरी छोटी से छोटी याद ले जाती है फिर खुद उन सवालों का जवाब तुझे मिल जाएगा,
क्यों किसी पे निर्भर होता है जब वाहेगुरु जी का दिया हुआ चमत्कार तेरी याद में है,
तेरी टूटी किस्मत फिर से जल्दी ही जुड़ जायेगी,
मेरी ना सुन किसकी भी तू ना सुन, बस अपनी यादो की सुन जो तेरे ज़हन में तेरे साथ है,
फिर देखना तेरी हर मुसीबतों का हल कैसे तेरे राहों में मिल जाएगा,
तुझे उन सब से जल्दी बहुत जल्दी छुटकारा मिल जाएगा, छुटकारा मिल जाएगा।

अमरप्रीत बुद्धिराजा
रानीगंज
जिला: बर्दवान
पश्चिम बंगाल